मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

पठनीय आलेख, सुन्दर और विचारणीय !


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यादव
कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन ।
मां कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि ।।
समसामयिक सन्दर्भों में हम यदि आज यादव समाज को लें जिसने अपने आत्मबल पर कई क्षेत्रों में अगुवाई कर रहा है, (यदि आज के व्यापारिक उद्देश्यों को लें) पर उसका उपयोग यादवों की भलाई के लिए कितना हो रहा है विचारणीय यह है, न यह की वह मुख्यमंत्री है या प्रधानमंत्री . जब सामाजिक सरोकारों की बात होगी तब भारतीय समाज में उसकी उपस्थिति का योगदान देखा जाएगा. हो सकता है की यादव अवाम उस तरह से अपनी तैयारी ना भी की हो जिस तरह से अन्यों ने किया है या भारतीय समाज के उन लोगों ने किया है जो अनेक अनुचित रास्ते (तरीकों) से अपने को मज़बूत किया हो, या यूँ कहें की संरक्षण के मार्ग प्रसस्त कर यादवों को संघर्ष के लिए आगे किया. अब वक्त आ गया पुनर मूल्याङ्कन का अतः अब यादव को जिस तरह चिन्हित कर अलग थलग किया गया लेकिन जिस गौरवशाली इतिहास का यादव वारिश है उसे अब और कितने दिनों झुठलाया जाता रहेगा. जिस अवाम की अपनी नियति ही रही हो कर्म के सिद्धांत की -
कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन ।
उसे साजिशन चोर उच्चक्का और गुंडा बना दिया जाय उस मिडिया द्वारा जिसमे समाज के मुट्ठी भर लोग सांप की तरह कुंडली मारकर बैठे हों उनका यह बयान की 'गुंडा राज़' आ गया है कितनी बड़ी उनकी साजिश है लोक तंत्र में . यही कारण है की ईमानदार और मेहनतकश लोगों ने संघर्ष का मार्ग ही बदल लिया और बेईमान और निकम्मा सत्ता के गलियारे पर काबिज हो गया है जिससे सत्ता का चरित्र बदला है अब यह देखना है कि यह लड़ाई कौन लड़ता है.
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि बाबा रामदेव जब इस तरह के संघर्ष के लिए आगे आते हैं तब वही मुट्ठीभर सत्ता नशीन उन्हें किस तरह अमर्यादित करते हैं किसी से छुपा नहीं है (बाबा रामदेव का आन्दोलन और कांग्रेस कि सरकार का जुर्म जिसको देश कि सर्वोच्च अदालत ने भी स्वीकार किया है कि केंद्र की कांग्रेस सरकार ने जुर्म किया था) आज तक किसी सन्यासी के साथ ऐसा नहीं हुआ जैसा बाबा रामदेव के साथ हुआ , क्या यह मर्यादा किसी मर्यादित सरकार की थी जी नहीं. मुझे यह कहते हुए बिलकुल आश्चर्य नहीं हो रहा है की उनके साथ यह सब केवल और केवल 'यादव' होने के कारण हुआ. जिसमें यादवों के नेताओं का चरित्र देखने लायक था (लालू,मुलायम और शरद) जिन्होंने उस सरकार के दुष्कर्म की भर्त्सना करना भी उचित नहीं समझा . आज वही मीडिया जिन चटखारों के साथ अपने 'संतों' के कुकर्मों पर परदा डालता है आश्चर्य है इस संत बाबा रामदेव के लिए सहानुभूति के एक शब्द भी नहीं कहे की बाबा क्या गलत कर या कह रहे हैं की काला धन वापस लाओ, यहाँ एक फरक और है 'अन्ना हजारे' और अन्ना टीम का उदय 'बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान आन्दोलन के चलते हुआ जो अब धीरे धीरे लगने लगा है की बाबा रामदेव के आन्दोलन को दबाने की साजिश के रूप में ही था.
और यह भी की बाबा रामदेव जो संत ठहरे पर काम तब भी चल जाता यदि लोगों को यह पता न चलता को की यह बाबा यादव है .

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