राजनीति

एक  और बड़ी भूल  कर रही है सपा 
सपा का परिवार मोह सपा को कहीं परिवार तक  ही न  समेट  दे. 
डॉ. लाल  रत्नाकर 
सुश्री डिम्पल   यादव मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश  की पत्नी हैं, नेता जी आजीवन  राजनीती करते रहे पर श्री अखिलेश  यादव  की मा का  परोक्ष  स्वरुप ही उनको यहाँ तक  लाया है . आश्चर्य  है की  मुख्यमंत्री की पत्नी को राजनीती में क्यों लाना चाहते हैं इनके परिवार की युवा पीढ़ी की पहली सदस्य जब  फिरोजाबाद  से चुनाव हारी तो उससे सबब लेना चाहिए  पर ये मान  नहीं रहे हैं  आशा है की कन्नौज  की अवाम  ज्यादा भोली हो और  डिम्पल  को  चुनकर भेज  दे. पर वह जनता सदियों के लिए  भूल  करेगी क्योंकि  डिम्पल  की राजनितिक महत्वाकांक्षा भले ही पूरी हो जाए वह अखिलेश  की मददगार नहीं हो सकतीं   -

कन्नौज से डिंपल यादव लड़ेंगी चुनाव?

लखनऊ/ब्यूरो
Story Update : Saturday, May 26, 2012    12:26 AM
Dimple Yadav contest from Kannauj seat
भले ही घोषणा न हुई हो, पर लोकसभा की  कन्नौज सीट के उपचुनाव में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की जगह उनकी पत्नी डिंपल यादव ही सपा उम्मीदवार होंगी।
सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव की अध्यक्षता में शुक्रवार को राज्य संसदीय बोर्ड की बैठक में सभी सदस्यों ने एकमत से डिंपल को कन्नौज से प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव किया। यह भी कहा कि कन्नौज के कार्यकर्ताओं की मांग भी यही है। इसीलिए डिंपल को प्रत्याशी बनाने का फैसला ही ठीक रहेगा। शनिवार को यहां केंद्रीय संसदीय बोर्ड की बैठक में इस पर औपचारिक रूप से मुहर लग जाने की उम्मीद है।
कन्नौज में उप चुनाव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के त्यागपत्र देने के कारण रिक्त हुई जगह को भरने के लिए हो रहा है। अखिलेश यहां से सांसद थे। पर, मुख्यमंत्री बन जाने के कारण उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है।
पिछले दिनों कन्नौज संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली सभी पांचों विधासभा सीटों के कार्यकर्ताओं ने लखनऊ आकर पार्टी नेताओं से मिलकर अखिलेश की जगह डिंपल को लड़ाने की मांग की थी। उससे पहले 12 मई को कन्नौज की जिला कमेटी ने भी डिंपल को चुनाव लड़ाने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित कर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव को भेजा था।
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राजनीति 

'मुख्यमंत्री जी इमानदारों को खोज रहे हैं सब बदलेंगें

'सम्पादक'

( समाजवादी पार्टी से इमानदारी की अपेक्षा जायज  है पर जरा गौर करिए की क्या  यह दौर  और  वक़्त इमानदारों का है )
देखिये मिडिया की प्रकृति हमेशा समाजवादी आदोलनों के खिलाफ रहती है क्योंकि भारतीय मिडिया (पूंजीवाद की चाकर है) जिस बहस को चला रहा है वह जायज है या नहीं यह तो समाजवादी पार्टी ही बताएगी पर श्री अखिलेश यादव जी मुख्यमंत्री के रूप में अनुभवी व्यक्ति हो सकते हैं न हों पर ओह इस मिडिया के स्वाभाव को समझते हैं, यद्यपि उनके पिताश्री को इस मिडिया ने हमेशा कटघरे में ही खड़ा किया, प्रदेश से पैसा भी उगाहा और प्रदेश को गालियाँ भी दीं. परन्तु युओया मुख्यमंत्री इनसे बचेंगे यही उनकी चतुराई होगी. मैंने तब भी लिखा था जब मायावटी कार्यवाहक मुख्यमंत्री थीं और मिडिया आमादा था "की उ.प्र. में गुंडा राज्य की वापसी" यह उसकी कितनी घिनौनी "चाल" है इस पर प्रेस परिषद् भी नज़र मोड़ लेता है कारण जो भी हों. अतः उम्मीद यही है की मुख्यमंत्री जी इनके चंगुल में नहीं आयेंगे और अपने "जनोपयोगी कार्यक्रमों को आगे बढ़ाएंगे इन्हें तो उसका प्रचार (मिडिया) को करना ही पडेगा.
उत्तर प्रदेश में इतने गैर जिम्मेदार अफसर जिन्हें लगता है की सरकार ही उनकी वजह से ही आयी है. उनपर भी नकेल कसना होगा ऐसे गैर जिम्मेदार अफसर जिनकी वजह से लूट की संस्कृती बनती है, सरकारें जाती उनकी ही वजह से ही हैं. उन्हें लगता है आ उनकी वजह से रही हैं.
जो जो विधायक जी जो मंत्री हो गए हैं या मंत्री होने के लिए कसरत कर रहे हैं, वह कितने इमानदार हैं इसका आकलन तो हो चूका है यदि इन सबकी जाँच करा दी जाय, पर अब चुनाव के समय ही  उनकी जांच हो पायेगा यदि  इन पर लगाम न लगी तो पता चलेगा की सारा मामला उल्टा हो गया. जनता  को वोट देना था उसने दिया और सरकार बदल गयी. आगे भी बदल जायेगी. यदि यह मानकर पार्टी के सब लोग चल रहे हैं तो दोनों हाथों लूटिये उत्तर प्रदेश बदल जाएगा, इसी आशा में समाजवाद परवान चढ़ेगा और आप  का समाजवादी परिवार  खुशहाल हुआ तो प्रदेश भी खुशहाल ही दिखाई देगा. यद्यपि जिस तरह से  सपाई बदलते हैं वह तो पूंजीवाद को भी मात देता है . यही कारण है की इनसे पूंजीवादियों को भी तकलीफ होने लगाती है. ऐसे में स्वाभाविक भी है की उन लोगों के दिल फटने लगे, शायद आप को लगता होगा की मैं सपा के समाजवादी चरित्र पर उंगली उठा  रहा हूँ  नहीं मैं यह कह रहा हूँ की सपा को खुली लूट की छूट मिली है या मिलनि चाहिए, ऐसा नहीं है पर तंत्रात्मक लूट की जो संस्कृति बनी है उसे बदलना आसान  है क्या ?
यदि आसन नहीं है तो विकास की धारा का रास्ता क्या होगा, व्यवसाय बनी राजनीती से विकास को गति देना आसान नहीं है. तब होगा क्या ! यही सवाल खड़ा होगा ( यहाँ मायावती का फार्मूला थोड़ा सा कारगर होता नज़र आता है , पर उसके बेईमान अफसरों ने उसे धोखा दिया और कांग्रेसियों से पैसा लेकर उसके खिलाफ माहौल बनवाये पर भला हो जनता का की उन बेईमानों का खेल सफल नहीं होने दिया और उस गुंडे नुमा युवराज़ को सबक सिखा दिया, मजेदार बात तो यही है की बसपा आज भी दुसरे नंबर पर है) पर समाजवादी पार्टी के प्रचंड बहुमत का यह मतलब बिलकुल नहीं है की जनता को इस दल की नीतियाँ पसंद आ गयी हों. यह सदा याद रखना होगा की जनता का दिल जितना होगा बे ईमान मंत्रियों की फौज का नहीं और न ही भ्रष्ट अफसरों की फौज का.
हाँ  उत्तर प्रदेश में सरकार चलाना भी आसान नहीं है पैसा कम है लूट ज्यादा है.
अन्यथा नहीं मुझे अपनी चर्चा में जो दिखाई देता है वह यही की जनता अभी की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं दिखती  लोगों का मानना है की बूढ़े हो गए भ्रष्ट मंत्रियों की फौज से "नवजवान मुख्यमंत्री" क्या काम लेगा ये सब तो चाचा ताऊ बने रहेंगे (यहाँ वास्तविक संबंधों पर मेरा आक्षेप नहीं है) और उनके निचे से बी मानी की धारा  बहती रहेगी ऐसे मंत्री हैं इस सरकार में जिस पर लोग हसते हैं 'फलनवा' मंत्री है.
हाँ बुरा न मानें तो यह कहूँ की पिछली सरकारें आने जाने के पीछे केवल और केवल लूट ही कारण रहा है वह पिछली से पिछली सरकार की पोलिस भर्ती रही हो या माया की माया की भूख और खुल्लम खुल्ला लूट. पता चला है कि 'माया के सर्वजन  हिताय  राज्य में 'एक एक जूनियर इंजिनियर ने अपनी वार्षिक ५ से १० करोड़ की कमाई की बनाई है क्योंकि उसकी पोस्टिंग जिस जगह है वहां का अधिशासी अभियंता प्रापर्टी की डीलिंग करता है यानी प्रापर्टी डीलर और अधिशासी अभियंता भी.(नॉएडा के अलावा) क्योंकि इनके आका आज भी मुख्यमंत्री के सबसे खास अफसर हैं यह तिलिस्म कब टूटेगा जब सब कुछ साफ़ नज़र आयेगा .
अब  यह कर्मचारी इस सरकार में पोस्टिंग चाहता है तो धद्दले से पैसा देकर पोस्टिंग लिया और लूट की योजना बना ली ऐसे ही प्रदेश लूटता है. पहले जो उपेक्षित थे वो आज भी उपेक्षित हैं. और उदास नीरस निराश लूट के लिए या लूट रोकने के लिए. पर ओ दुखी हैं. सुना है कि बेईमान जल्दी चीजों को पकड़ता है 'इमानदार को समय लगता है' अब  कहाँ से लायें अधिकारी या कर्मचारी समय दीजिये 'मुख्यमंत्री जी इमानदारों को खोज रहे हैं सब बदलेंगें. समय तो लगता ही है.
क्या आप अमर सिंह  की लूट की कहानी भूल  गए  जिसने  लोहिया और समाजवादी विचारों के पक्के 'अनुआइ' को बर्बाद करके रख  दिया  ऐसे में युवा  श्री अखिलेश यादव जी मुख्यमंत्री के रूप में  बहूत  कुछ करना चाहते हैं इंतज़ार  कीजिये मुझे लगता है समीक्षा करेंगे , हर तरह की समीक्षा जनता से , विरोधियों से और शायद हम  जैसे निंदकों से भी जो  चाहतें हैं की यह प्रदेश  को  उस  उंचाई तक  ले जाएँ  जहाँ  से इस  प्रदेश  की सदियों की खोई  गरिमा वापस  ला सकें . 
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अंत  में यही कहूंगा की जीतनी जल्दी हो  परदेश  की नौकरशाही को नियंत्रित  किया जाय  यह आम  धारना  बन  रही है की माया के युग  के लूटेरे कर्मचारी सभी   महत्व  की जगहों पर  काबिज़  हैं , कारण  अनेक हैं कोई    सुने तो .
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संसदीय प्रत्याशिता 
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समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश
19, विक्रमादित्य मार्ग, लखनऊ
प्रकाशन एवं प्रसारण हेतु दिनांक- 03.05.2012
समाजवादी पार्टी, उत्तर प्रदेश द्वारा निर्णय लिया गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव-2014 में, जो पदाधिकारी, नेता एवं कार्यकर्ता चुनाव लड़ने को इच्छुक हों, वह अपने आवेदन पत्र 31 मई,2012 तक प्रदेश कार्यालय में जमा करेगें। आवेदन पत्र पार्टी द्वारा निर्धारित छपे हुए फार्म पर दिया जाएगा। आवेदन पत्र के साथ 10 हजार रूपए बतौर शुल्क जमा करना होगा।

समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के सभी जिला/महानगर अध्यक्ष, महासचिव, साॅसद,पूर्व साॅसद, विधायक, पूर्व विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, राष्ट्रीय राज्य कार्यकारिणी के पदाधिकारी, सदस्यगण एवं सम्बद्ध प्रकोष्ठो के प्रदेश अध्यक्ष, जिला/महानगर अध्यक्ष, विधान सभा अध्यक्ष तथा प्रमुख नेतागण के नाम जारी परिपत्र में कहा है कि आवेदनकर्ता को समाजवादी पार्टी का सक्रिय सदस्य होना चाहिए। वह समाजवादी पार्टी बुलेटिन का भी आजीवन सदस्य हों। आवेदक के विरूद्ध समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय, जिला एवं महानगर पार्टी का सदस्यता धनराशि आदि का कोई बकाया नहीं होना चाहिए। इस सम्बन्ध में जिला/महानगर अध्यक्ष से प्रमाण पत्र प्राप्त कर आवेदन पत्र के साथ लगाना आवश्यक है।

(राजेन्द्र चैधरी) 

प्रदेश प्रवक्ता

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