समाज


विचार देखें, विचारधारा नहीं
तेजेंद्र शर्मा 
(जनसत्ता 6 मई, 2012) 
हिंदी साहित्य की त्रासदी है कि लंबे अरसे तक इस पर साम्यवादियों का कब्जा रहा। उनका मानना है कि उनकी विचारधारा के बाहर जो कुछ लिखा जा रहा है, साहित्य ही नहीं है। जबकि मेरा मानना है कि साहित्य के लिए विचार आवश्यक है, जो लेखक के भीतर से जन्म लेता है। विचारधारा ऊपर से थोपी जाती है, इसलिए पैंफलेट छपाने के बेहतर काम आती है। 
ज्ञानरंजन ने सारी उम्र लेखक को देखा, रचना को नहीं। वे एक खास सोच के लेखकों को ‘पहल’ में छापते रहे, इसमें मंगलेश डबराल भी शामिल थे। उदय प्रकाश तब तक महान रहे, जब तक उनकी गोद में बैठे रहे। वहां से निकलते ही वे लेखक नहीं रहे। ज्ञान जी तो अपनी पत्रिका में विज्ञप्ति तक छापते रहे कि कृपया हमें रचना न भेजें। हमें जिन लेखकों से रचना मंगवानी होगी, उनसे खुद संपर्क कर लेंगे! विचारधारा का ऐसा हौआ शायद ही किसी अन्य पत्रिका पर हावी रहा होगा। 
हमारे मित्र जगदंबा प्रसाद दीक्षित (‘मुर्दाघर’ के लेखक) की स्थिति एकदम अलग है। उन्हें मार्क्सवादी अपना नहीं मानते और वे दूसरों को अपना मानने में हिचकते हैं। मेरा और उनका रिश्ता खासा पुराना और निपट घरेलू है। हम हिंदी साहित्य के तथाकथित मार्क्सवाद पर बहस भी कर चुके हैं। वे मानते हैं कि मेरी कहानियां आम आदमी का दर्द प्रस्तुत करती हैं, मगर वे मुझे साहित्यकार मानने से इनकार करते हैं, क्योंकि मैं वर्तमान व्यवस्था के भीतर रह कर हल खोजने का प्रयास करता हूं, उसके विरुद्ध क्रांति का आह्वान नहीं करता। वे साफ कहते हैं- जब तक आप अपने भीतर एक राजनीतिक दृष्टि पैदा नहीं करेंगे, आप लेखक नहीं बन सकते। 
मेरा सवाल होता कि अगर मैं भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस के सोच से सहमत हो जाऊं तो क्या आप मान लेंगे कि मेरे पास एक राजनीतिक दृष्टि हो गई? उनका कहना था कि राजनीतिक दृष्टि का एक ही अर्थ है- वामपंथी दृष्टि। 
मैंने दीक्षित जी से कहा कि देखिए, हम आपकी कहानी ‘गंदगी और जिंदगी’ शिवसेना के अखबार में बिना किसी काटछांट के छपवाते हैं। वे मान गए और वह कहानी ‘सामना’ में प्रकाशित हो गई। उन्हें दिल्ली से बहुत गालियां मिलीं। मैंने कहा कि अब आप नरेंद्र कोहली की कोई रचना किसी भी वामपंथी पत्रिका में प्रकाशित करा कर दिखाइए। स्थिति यह है कि कोहली को छोड़िए, ‘पहल’ या ‘वसुधा’ की फाइलें देख जाइए, विद्यानिवास मिश्र, रमेशचंद्र शाह, नंदकिशोर आचार्य जैसे अनेक लेखकों के नाम नदारद मिलेंगे। हिंदी साहित्य में उनका स्थान है, पर वामपंथी पत्रिकाओं में उनके लिए जगह नहीं। आचार्य तो समाजवादी होने के नाते वामपंथ की तरफ खड़े मिलेंगे, पर वामपंथ में मार्क्सवादी होना ज्यादा जरूरी है। प्रगतिशील खेमे की पत्रिका है तो भाकपा की विचारधारा का अनुयायी होना होगा, जनवादी है तो माकपा का! मजे की बात है कि दीक्षित जी की कहानी प्रकाशित करने में ‘सामना’ को कोई खतरा महसूस नहीं हुआ। मगर किसी विजातीय की रचना छापने से जैसे साम्यवाद और उसकी पत्रिकाओं का अस्तित्व खतरे में आ जाता है। 
कमल किशोर गोयनका दिल्ली कॉलेज में हमारे प्राध्यापक थे। प्रेमचंद पर उनका काम जगजाहिर है। मगर किसी भी साम्यवादी साहित्यिक पत्रिका में उन्हें स्थान नहीं दिया जाता। अगर गोयनका घोषित मार्क्सवादी होते तो उन्हें प्रेमचंद पर काम करने के लिए जरूर किसी विश्वविद्यालय का चांसलर बना दिया जाता। 
भारतीय मार्क्सवाद और इस्लाम दोनों में बहुत-सी समानताएं हैं। जैसे कि दोनों में सवाल पूछने की इजाजत नहीं है। आपको दोनों में अंधा विश्वास करना होगा। और दोनों ही बहुत जल्दी खतरे में आ जाते हैं। इसलिए आप मुसलमान होकर मार्क्सवादी हो सकते हैं, मगर हिंदू होकर नहीं। हिंदू से पहली मांग होती है कि आप सेक्युलर हो जाइए। जबकि मुसलमान पार्टी की मीटिंग से उठ कर नमाज पढ़ कर वापस मीटिंग में शामिल हो सकता है। 
कभी किसी मार्क्सवादी लेखक या पत्रिका ने इस बात पर सवाल नहीं उठाया कि मक्का और मदीना में गैर-मुसलमानों के लिए प्रवेश वर्जित है। यह जान कर उनका सेक्युलरिज्म आहत नहीं होता कि सऊदी अरब में इकामा (वर्क परमिट) दो रंगों का होता है- हरा मुसलमानों के लिए और भूरा गैर-मुसलमानों के लिए। जेद्दाह में जब नमाज के लिए अजान होती है तो मुसलमान हों या गैर-मुसलमान, किसी को भी सड़क पर चलने की इजाजत नहीं होती। 
फेसबुक और ब्लॉगों को भला कोई गंभीरता से क्यों नहीं लेता। इसलिए कि उन पर गंभीर टिप्पणियां वैसे ही खोजनी पड़ती हैं जैसे समुद्र से मोती। यहां तो मृत्यु की खबरों पर भी लोग ‘लाइक’ कर देते हैं। हिंदी के महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों को फेसबुकियों या ब्लॉगरों से किसी प्रकार का प्रमाणपत्र नहीं चाहिए। यह केवल शगल मेला है। सामाजिक मिलन, जहां लोग एक दूसरे का हाल पूछ लेते हैं। यहां की टैगिंग और सेल्फ-प्रोमोशन की बीमारी लाइलाज है। 
हम, जो विदेशों में हिंदी की लड़ाई लड़ रहे हैं, जानते हैं कि मार्क्सवाद के ढकोसलों से हमारा काम नहीं चल सकता। हमारे यहां मंदिर सामुदायिक-केंद्र का काम करते हैं। संस्कृत और हिंदी की कक्षाएं मंदिरों में लगती हैं। वहां शास्त्रीय संगीत और योग की कक्षाएं लगाई जाती हैं। जब कवि भारत से लंदन आते हैं (मैं मंचीय कवियों की बात नहीं कर रहा), तो मंदिर ही आगे बढ़ कर मुफ्त में हॉल और सौ-सौ लोगों को मुफ्त भोजन कराते हैं। मंदिर यहां धार्मिक के साथ-साथ सामाजिक कर्तव्य भी पूरे कर रहे हैं। मुसलमान और सिख हिंदी प्रेमी इन मंदिरों में हमारे साथ खड़े होते हैं। उनका मजहब मंदिर में आकर खतरे में नहीं पड़ता। मार्क्सवाद तो यहां से बहुत दूर भारत में ही निवास करता है। 
विष्णु खरे के वक्तव्य से मुझे किसी प्रकार की असुविधा नहीं हुई। मैं जन्म से हिंदू हूं, सहनशील हूं और मुझमें अपने हिंदू होने का कोई अपराधबोध नहीं है। साहित्यिक अत्याचारों की वजह से मैं अपने आप को क्यों बदलूं। मेरे लिए आम आदमी का दर्द ही सबसे महत्त्वपूर्ण है। यह आम आदमी केवल भारत में नहीं रहता। इसका निवास ब्रिटेन और अमेरिका में भी होता है। मुझे धर्म, विचारधारा जैसी बेकार बातों में कोई रुचि नहीं है। 
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लालू प्रसाद ने रामदेव को पगलेट कहा
नई दिल्ली, एजेंसी :02-05-12 06:07 PM




सांसदों को डकैत और हत्यारे करार देने वाले बाबा रामदेव पर पलटवार करते हुए राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने बुधवार को योग गुरु को पगलेट घोषित कर दिया।
लालू ने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं के सवाल करने पर कहा कि बाबा रामदेव पगला  हैं। जो भी इस प्रकार की बातें करता है वह पगलेट है। उन्होंने रामदेव द्वारा सांसदों को डकैत और हत्यारे करार दिए जाने पर यह टिप्पणी की।
रामदेव ने मंगलवार को छत्तीसढ़ के दुर्ग में अपनी माह भर चलने वाली यात्रा की शुरुआत के समय मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि ये वो लोग हैं जिन्हें कोई परवाह नहीं है। किसानों की परवाह नहीं है, मजदूरों की या देश की जनता की परवाह नहीं है।
(हिन्दुस्तान से साभार)

रामदेव का बयान, कहा संसद में बैठे हैं शैतान
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्‍तान
First Published:02-05-12 09:54 AM
योग गुरु स्वामी रामदेव ने सांसदों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए कहा है कि संसद में बैठे कुछ लोग रोगी, जाहिल और लुटेरे हैं। स्वामी रामदेव ने सांसदों को हत्यारा तक करार देते हुए कहा है कि संसद में बैठे लोग इंसान के रूप में शैतान हैं।
उन्होंने कहा कि 543 रोगी हिंदुस्तान चला रहे हैं। हमने उन्हें कुर्सी पर बैठा दिया है। लेकिन उन्हें कुर्सी पर बैठने का अधिकार नहीं है। लेकिन देश चल रहा है। हमने ऐसा ही सिस्टम बनाया है। बेईमान, भ्रष्ट लोगों से संसद को भी बचाना है।
हालांकि, रामदेव ने कुछ सांसदों को अपनी आलोचना से बख्शते हुए कहा कि वहां (संसद में) कुछ अच्छे लोग भी बैठे हैं। स्वामी रामदेव ने छ्त्तीसगढ़ के दुर्ग शहर में भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ अपनी यात्रा की शुरुआत करते हुए यह बयान दिया।
योग गुरु के बयान पर राजनीतिक दलों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है। डुमरियागंज संसदीय सीट से लोकसभा सदस्य और कांग्रेस नेता जगदंबिका पाल ने कहा कि अन्ना जी द्वारा संसद और सांसदों पर की गई टिप्पणी हो या स्वामी रामदेव की टिप्पणी, ये सांसदों पर टिप्पणी नहीं है बल्कि जनता की समझ पर सवाल है। सांसदों को जनता ही चुनती है।
भ्रष्टाचार और काले धन पर सरकार की तरफदारी करते हुए पाल ने कहा कि सरकार ने पारदर्शिता पर जोर दिया है। सरकार ने अन्ना और स्वामी रामदेव की भावनाओं की कद्र की है। भारत में जिस तरह से चुनाव हो रहे हैं, उससे लोकतंत्र मजबू होगा।
स्वामी रामदेव को विशेषाधिकार हनन का नोटिस भेजने के सवाल पर उन्होंने कहा कि बार-बार विशेषाधिकार हनन का नोटिस नहीं भेजा जा सकता है, लेकिन जनता इसका फैसला करेगी। वहीं, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद मोहन सिंह ने कहा कि मैं कामना करता हूं कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दें और वे साधु की तरह आचरण करें। 

रामदेव के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव

 बुधवार, 2 मई, 2012 को 16:48 IST तक के समाचार
रामदेव
कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं ने रामदेव के बयान की आलोचना की है.
सांसदों के खिलाफ विवादास्पद बयान देने पर समाजवादी पार्टी ने बाबा रामदेव के खिलाफ संसद में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव रखा है.
समाचार एजंसी पीटीआई के अनुसार समाजवादी पार्टी के सांसद शैलेंद्र कुमार ने रामदेव का नाम लिए बगैर कहा कि सांसदों के खिलाफ बयानबाजी की जा रही है जिससे संसद की गरिमा को नुकसान पहुंचा है.
भ्रष्टाचार के खिलाफ छत्तीसगढ़ के दुर्ग भिलाई से अपना अभियान शुरू करने से पहले रामदेव ने एक बयान में सांसदों को 'जाहिल, लुटेरा और हत्यारा' कहा था.
धार्मिक चैनल 'आस्था' पर योग के एक कार्यक्रम में बाबा रामदेव ने कहा कि, ''इस देश के नागरिक होने के नाते हमें संसद को सुधारने का दायित्व उठाना चाहिए, जहां अनपढ़ ही नहीं हत्यारे भी सत्ता का लाभ उठा रहें है.''
रामदेव के इस बयान पर राजनीतिक गलियारों में उनकी तीखी आलोचना हो रही है. लगभग सभी राजनीतिक दलों के सांसदों ने रामदेव के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग की है.

प्रतिक्रिया

"एक संत की भाषा कभी ऐसी नहीं होती, मै प्रार्थना करता हूं कि उनकी वेशभूषा के साथ उनकी भाषा भी ठीक हो जाए."
मोहन सिंह, समाजवादी पार्टी
समाजवादी पार्टी के नेता मोहन सिंह ने कहा, “एक संत की भाषा कभी ऐसी नहीं होती, मै प्रार्थना करता हूं कि उनकी वेशभूषा के साथ उनकी भाषा भी ठीक हो जाए."
वामपंथी दल सीपीआई के सांसद डी राजा ने कहा, ''हम इसकी निंदा करते है, रामदेव को पता नहीं कि सांसद कैसे चुने जाते है. उन्हें इस तरह के गैरजिम्मेदार बयान नहीं देने चाहिए.''
इससे पहले कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं ने रामदेव के बयान की आलोचना की.
आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव ने रामदेव पर चुटकी लेते हुए कहा, ''रामदेव पागल हो गए है. वो निराश है और उन्हे अपने दिमाग की जांच करानी चाहिए.''
इससे पहले टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने भी सांसदों के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया था. इस मामले में उनके खिलाफ भी संसद में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाया गया था.
पिछले साल टीम अन्ना के मंच पर सांसदों के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देकर अभिनेता ओम पुरी भी विवादों के घेरे में पड़े थे. अपने बयान पर उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी.

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